गोवा और उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान के बाद से सोशल मीडिया पर सरकार को लेकर एकदम चुप्पी जैसी है. थोड़ी बहुत बात की है तो वो केवल पार्टियों के लोगों ने की है जो पार्टी लाइन के हिसाब से अपनी अपनी पार्टी के पक्ष में थी.
गोवा में त्रिशंकु विधानसभा तय सी है. वहां परिणाम के बाद सरकार किसकी हो यह बात खरीद फरोश्त के नतीजे बताएंगे. एंटी इंकंबेंसी के चलते भाजपा की डोर फंसी है तो नेतृत्व के असमंजस ने कांग्रेस को उलझा रखा है. इसलिये कोई भी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह पा रहा है.
उत्तराखंड में भी बाजी रावत के हाथ आने की उम्मीद थी पर उनकी पार्टी के लोगों ने ही उसमें सेंध लगा रखी है. वैसे कांग्रेस का खेल तो असल में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने शुरू में ही बिगाड़ दिया था जो आज तक ठीक से संभल नहीं पा रहा है. भाजपा में मुख्यमंत्री धामी खुद काफी कमजोर हैं. उन्हें संगठन का टेका है. ये टेका तो उनके पहले के मुख्यमंत्रियों को भी था पर वे संतोषजनक जैसा कुछ नहीं कर पाए तो धामी से कैसे उम्मीद की जा सकती है. इसके बाद भी पलड़ा भाजपा की तरफ झुका हुआ है पर सत्ता उसे मिल ही जाएगी यह कोई नहीं कह पा रहा है.